ध्यान लगाना नहीं, ध्यान हटाने की कला का नाम आध्यात्म है।

ध्यान लगाना नहीं, ध्यान हटाने की कला का नाम आध्यात्म है। हमारे मन की एक खास प्रवृति होती है कि उसे जहा भी थोड़ा रस मिलता है वही रम जाता है। वह चाहे स्त्री हो, पैसा हो, नशा हो, चाहे धर्म हो। वह उसी को पकड़ बैठता है और उसकी पकड़ जितनी मजबूत होती जाती है वह उतना ही उसमे उलझ जाता है। और इस उलझन को सुलझाने का नाम "आध्यात्म" है।

ध्यान लगाना नहीं, ध्यान हटाने की कला का नाम आध्यात्म है। हमारे मन की एक खास प्रवृति होती है कि उसे जहा भी थोड़ा रस मिलता है वही रम जाता है। वह चाहे स्त्री हो, पैसा हो, नशा हो, चाहे धर्म हो। वह उसी को पकड़ बैठता है और उसकी पकड़ जितनी मजबूत होती जाती है वह उतना ही उसमे उलझ जाता है। और इस उलझन को सुलझाने का नाम “आध्यात्म” है।

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