ना मेरा बाप किसी से डरता था , न मैं किसी के बाप से डरती हूं।
डर– डर एक ऐसी बुनियाद है, जो इंसान को अंदर से जड़ो तक खोखला कर देती है। कहते है, कि जो डर गया वो मर गया। हम जिंदगी में अनेको बार डर की चपेट में आते है। जैसे मरने का डर, रिश्तो को खो देने का डर, अपनों से दूर होने का डर, असफलता का डर, बेइज्जती का डर, अपने प्रेमी को खोने का डर, झूठ बोलने के बाद सच बाहर आने का डर ,और , माँ के मन में अपने बच्चो को लेकर तमाम डर।
और कई बार तो इस डर के चलते कई लोग डिप्रेशन में आ जाते है । और आत्महत्या तक कर लेते है। जैसे आप श्री सुशांत सिंह राजपूत जी का ही उद्धारण ले लीजिये। अपने मन में कई डरो को संजोए हुए वो भी डिप्रेशन का शिकार हुए। और डिप्रेशन तो ऐसा शत्रु है जो हमारे सोचने और समझने की क्षमता को ख़तम ही कर देता है। मन के कुछ डर स्वाभाविक है। पर क्या आपको वाकई लगता है कि डरने के अलावा कुछ और विकल्प नहीं है ?
नहीं, दोस्तों बिलकुल नहीं , डर के आगे ही तो जीत है। डर के अंधेरो को हटा कर निर्भयता के प्रकाश में जीने का एक अलग ही मज़ा है।
यदि आप निर्भय बन रहे है, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि आप सत्य बोलने लगे है। निर्भयता आपके अंदर ऐसा आत्मविश्वास जगा देती है कि वो आपके शक्ल पर नूर की तरह चमकती है। कहीँ न कहीं मैं भी इस डर से बाहर आयी हूँ। और ये कहावत मुझ पर फिट बैठती है कि ” ना मेरा बाप किसी से डरता था , न मैं किसी के बाप से डरती हूं। “
अब सवाल ये उठता है कि डर को हटाकर निर्भय कैसे बना जाए ?
(ना मेरा बाप किसी से डरता था , न मैं किसी के बाप से डरती हूं।)
तो चलिए आज में आपको निडर होने के कुछ नुस्खे बताती हूँ।
1 – हमेशा सच कहिये –
जी हां, हमेशा सच बोलिये, क्योकि हम डरते तभी है, जब मन में कुछ ऐसा छुपा कर रखते है, जो सच ना हो। तो डर तो लगेगा ही।
2 – खुद पर भरोसा रखिये –
यकीन मानिये दोस्तों आप बोहोत ख़ास है। ईश्वर ने आप जैसा किसी को नहीं बनाया है। यकीं नहीं होता तो आप कोई भी ऐसा इंसान ढूंढ कर दिखाइए जो पूरा आप जैसा हो। नहीं है ना। क्योंकि आप ख़ास है। बोहोत खास। इसीलिए खुद को पहचानिये और खुद पर भरोसा रखिये। ये नजरिया आपके आत्मविश्वास को एक नयी सीढ़ी पर लेकर जाएगा।
3- कभी किसी का दिल न दुखाएं और धोखा न दे –
किसी का दिल न दुखाएं और धोखा न दे क्यूंकि ऐसा करके हम अपने कर्मो का ऐसा बीज डाल रहे है जो हमे वापस मिलने ही वाला है।
4– असफल होने से न घबराएं –
असफलता अभिशाप नहीं है। बल्कि में तो कहती हूं, यह एक तरह का वरदान है, जो हमे जीवन में बोहोत कुछ सिखाता है। भगवान हमारा भला ही चाहते है इसलिए उन्होंने सफलता के साथ असफलता को बनाया है। सोच कर देखिये कि यदि भगवान ने सिर्फ सफलता बनायीं होती, तो लगातार सिर्फ सफलता पाते पाते इंसान अभिमानी नहीं हो जाता ? और अभिमान और ईगो हमारे शरीर में अनेको तरह के बुरे विचार को जन्म देने लगते है।
5 – रिश्तो को खोने के डर से बाहर आये-
रिश्तो को बनाए रखने के लिए अपने स्वाभाव को विनम्र बनाए और प्रेम से सींचे। खोना और पाना ईश्वर के आधीन है और काफी हद तक हमारे कर्मो पर। उद्धारण के लिए मान लीजिये पूर्व जन्मो के कारण ईश्वर ने भाग्य में लिखा कि मै ग़रीब पैदा होउंगी। स्वीकार है। लेकिन मुझे ईश्वर ने कर्मो का सूत्र दिया है। और ये सूत्र कहता है कि, मै गरीब पैदा हुई, यह ईश्वर की मर्ज़ी है, मगर मै गरीब मरू ऐसा कही नहीं लिखा। मै अपने कर्मो को और उसकी दिशा को इतना मज़बूत कर लूंगी कि मै कम से कम गरीब तो ना रहू।
6 – अपने स्वाभाव में नम्रता रखे और शब्दों को नाप तोल कर बोले –
स्वाभाव में नम्रता होना और मधुर वचन कहना हमारे औरा को आकर्षित बनता है। ये हमारे चारो और सकारात्मक तरंगो को एकत्रित करता है। जिससे हम सकारात्मक लोगो को आकर्षित करते है। ये तो आप जानते ही होंगे कि लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन सिस्टम को हम अपनी इच्छाओ को पूरा करने के लिए उपयोग करते है। और यह सिस्टम की शुरुआत भी सकारत्मक और अच्छा बोलने से होती है जिससे हमारे विचार भी सकारात्मक होते है और हम अपनी मन चाही चीज़ को पा लेते है।
7 – यदि आप किसी से सच्चा प्यार करते है तो सत्य कहिये और उसे बताइये –
यदि किसी से सच्चा प्रेम करते है तो सत्य कहिये और उसे बताइये क्यूंकि प्रेम में वो शक्ति होती है जो ईश्वर को अपने निर्णय को बदलने पर मजबूर कर देती है। प्रेम वह ईश्वरीय भाव है जो इंसान को उपहार के रूप में मिला है। मगर शर्त ये है कि प्रेम सच्चा होना चाहिए। सच्चा प्रेम निस्वार्थ और निश्छल होता है, जो स्वयं से ज़्यादा अपने साथी के बारे मे मनन और चिंतन करता है। वह अपने साथी को प्रगति के पथ पर ले जाता है। वह अपने साथी का अपमान न तो कर सकता है और न ही सह सकता है। ऐसा होता है प्रेम का योग।
8 – ध्यान करे Meditation –
जी हां दोस्तों ,ध्यान Meditation यानी साधना। ध्यान करना बोहोत ही मददगार होता है। ये ना ही हमारे शरीर को स्वस्थ करता है बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जिम्मेदार है। ये हमारी आत्मिक शुद्धि कर हमे हर डर से आज़ाद कर देता है। हमे सच्चाई का मार्ग दिखता है। यह हमे कर्मो और मोह के बंधनो से बाहर निकलता है। बस ये समझ लीजिये कि ये हमे ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पे ले जाता है। जिसने इस आनंद की अनुभूति एक बार कर ली उसके लिए फिर बाकी सब आनंद पीछे रह जाते है। सत्य भी यही है कि अंत में हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते है और हमारी आत्मिक प्रगति भी ।
आगे की कहानी तो आत्मा जगत की है जो कि बोहोत ही अलग कांसेप्ट है। जीवन तो वहां भी है। मगर वहां सब कुछ अलग है।
इसके बारे में मै अपने अलगे ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करुँगी। तब तक के लिए अभी यही विराम देते है। आप सभी लोग अपना ख्याल रखे और निर्भय बने।
तो आखिर मैंने तो डर पर जीत हासिल कर ही ली।
– ब्लॉग पढ़े – ” ना मेरा बाप किसी से डरता था , न मैं किसी के बाप से डरती हूं। “
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One thought on “ना मेरा बाप किसी से डरता था , न मैं किसी के बाप से डरती हूं।”
Nice